खत्री-सभा मण्डी का गौरवमयी इतिहास
खत्री-सभा मण्डी आज जिस रुप में आपके सामने है इसको बनाने में खत्री समाज के कर्मठ व दूरदर्शी महानुभावों ने चार बार प्रयास करके सफलता पाई है जो अपने में 128 वर्षों का इतिहास समेटे हुये है।
मण्डी रियासत के 16 वें राजा बिजै सेन के राज्य काल(1851-1902) में राज दरबार में नियुक्त स्वर्गीय मुन्शी रामदिता मल कालरू कायथ जी ने खत्री जाति के सुधार के लिये विक्रमी सम्वत् 1949 (सन् 1892 ई.) को “दस्तूर-उल-अमल बाबत अखराजात शादी व गमी अक्वाम खत्रियान” नाम से बुकलेट लिखी जिसे मण्डी राजा ने प्रजा के उद्धार के लिये स्वीकृत करके प्रथम वैशाख,1949 वि.सं. को कानूनन जारी किया जिस पर कुछ समय तक अमल होता रहा लेकिन विशेष सफलता नहीं मिली।
फिर कुछ जागरूक खत्री महानुभावों के अनुरोध पर दुसरी बार मण्डी रियासत के सुपरिंटेंडेट मिस्टर गार्डन वाकर,आई.सी.स. के आदेश पर नगरपालिका मण्डी के सदस्यों ने “दस्तूर- उल- अमल” का सँशोधित सँस्करण मण्ड्याली/टाँकरी लिपि में राजपूत प्रिंटिंग वर्क्स लाहौर से प्रकाशित कराया जिसे विक्रमी सम्वत् 1971 को विधिवत जारी किया लेकिन खत्री सभा का गठन न होने व आपसी मनमुटाव के कारण अधिक समय तक इस पर भी आचरण न हो सका।
तीसरी बार विक्रमी सम्वत् 1983 को समाज में निरन्तर बढ़ती जा रही कुरीतियों से क्षुब्ध होकर कुछ बुजुर्गों ने एक और प्रयास करके खत्री बिरादरी की सभा बनाई जिसमें उपरोक्त दोनो बुकलेट को संशोधित व परिवर्तित करके एक नई पुस्तक “बजट रसूमात खत्री ब्रादरी मण्डी” अरोड़वंश प्रैस अनारकली लाहौर से प्रकाशित कराई। स्थानीय भूतनाथ मँदिर के प्राँगण में सभा करके पुस्तक में दिये दिशा निर्देशों के अमल के लिये वृद्ध सज्जनों ने स्वंय बाजार में ढिंढोरा पिटकर लोगों को इसकी जानकारी दी। लेकिन इतनी मेहनत करने के बावजूद यह प्रयास भी असफल ही हुआ।
अंततः समाज में व्याप्त कु-प्रथाओं व व्यर्थ के खर्चों को रोकने व इसमें सुधार करने के लिये कुछ हितैषी सज्जनों लाला देवीराम,लाला महेन्द्र सिंह,लाला गोविन्द राम,लाला परमानन्द सहगल तथा लाला घुन्कूराम जी ने खत्री-सभा बनाने का बीड़ा उढाया और 19 ज्येष्ठ,1993,विक्रमी सम्वत् (1-6-1926) को भूतनाथ मँदिर में खत्री विरादरी की साधारण सभा बुलाकर सभा को पुनर्जिवित किया। इसमें सभासदों की सम्मति से अन्तरँग सभा के 16 सदस्यों का चुनाव किया जिसमें सर्वश्री वल्लभ दास वैद्य रईस को प्रधान, देवीराम सराफ उप-प्रधान,हेमचन्द वकील मन्त्री,पीनाक पाणी धौन उप-मऩ्त्री,महेन्द्र सिंह धौन सराफ कोषाध्यक्ष चुने गये। इस सभा के प्रतिष्ठित सभासदों में सर्वश्री नाथूराम वैद्य,जोरामल भँगाहलिया,गोविन्दराम सराफ,परमानन्द सहगल,घुन्कूराम सराफ,हरदेव सिंह भँगाहलिया,नोताराम मालिक शिव स्टोर,भिखमराम बैहल,पुरुषोतम राम मल्होत्रा,बख्शीराम पहाड़ू,मुन्शी देवराज बैद्य शामिल थे। कुछ समय पश्चात बलिभद्र बिष्ट व पतराम मल्होत्रा जी को बख्शीराम पहाड़ू व मुन्शी देवराज बैद्य जी के स्थान पर नियुक्त किया गया।
तब तक सभा का अपना कोई भवन नहीं था अतः चबाटा मुहल्ला में रहने बाले विष्ट परिवार से लाला मय्याधर व लाला चँन्द्रमणी जी ने अपनी भूमि सहर्ष इस पुनित कार्य के लिये दान कर दी जहाँ पर बाद में सभा का कार्य चलता रहा।
तदोपरान्त नियम व उपनियम तैयार करके बजट बनाने के लिये 10 सदस्यों की उपसमिति बनाई जिसमें खत्री जाति की स्त्रियों को भी शामिल कर उनसे भी विचार विमर्श करके “कर्तव्य दर्पण” नाम की पुस्तक का मसौदा तैयार किया गया।मसौदे के किसी भी विषय पर धर्मशास्त्र की व्यवस्था देने के लिये सभा श्रीमान उपाधा जयदेव जी टारनावाले की सम्मति लेती रही और इस तरह देशाचार व धर्म के दृष्टिगत गहन मँथन करके साधारण सभा में प्रारुप को पास कराया गया। प्रारूप को पुस्तक रुप में लिखने का भागीरथी प्रयास श्रीमान पिनाक पाणी धौन जी ने किया और अन्त में यह पुस्तक ‘सुधारक दर्पण’ के नाम से प्रकाशित हुई।
सन् 1990 के दशक में खत्री सभा के सदस्यों ने स्वंय रेत बजरी उठाकर श्रमदान करके खत्री सभा के मौजूदा सुन्दर भवन का निर्माण किया।इस कार्य को करने के लिये खत्री समाज के रसूखदार लोगों व अन्य सद्स्यों ने दिल खोलकर दान दिया और इस तरह हमारा यह खत्री सभा भवन अस्तित्व में आया। वर्ष 1996 में प्रधान श्री ताराचन्द टँडन जी की के कार्यकाल में 2 जून,1996 को खत्री-सभा का विधिवत पँजीकरण हुआ।
खत्री सभा के लिये कठिन परिश्रम करने वाले उपरोक्त सभी बुद्धिजीवियों का नाम खत्री इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा तथा खत्री समाज इन सभी महानुभावों का सदैव ऋणी रहेगा।
यूथ विंग बन जाने से युवा वर्ग तन मन धन से खभी सभा के लिये युद्ध स्तर पर कार्यरत है और खत्री सभा अपने सामाजिक कार्यों से हिमाचल प्रदेश में नित नया इतिहास रच रही है।
सँकलन व प्रस्तुतिः विनोद बहल